बाल गंगाधर तिलक, एक भारतीय राष्ट्रवादी, शिक्षक, समाज सुधारक, वकील और एक स्वतन्त्रता सेनानी थे। ये भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के पहले लोकप्रिय नेता हुएँ; ब्रिटिश औपनिवेशिक प्राधिकारी उन्हें “भारतीय अशान्ति के पिता” कहते थे। उन्हें, “लोकमान्य” का आदरणीय शीर्षक भी प्राप्त हुआ, जिसका अर्थ हैं लोगों द्वारा स्वीकृत (उनके नायक के रूप में)। इन्हें हिन्दू राष्ट्रवाद का पिता भी कहा जाता है। तिलक ब्रिटिश राज के दौरान स्वराज के सबसे पहले और मजबूत अधिवक्ताओं में से एक थे, तथा भारतीय अन्तःकरण में एक प्रबल आमूल परिवर्तनवादी थे। उनका मराठी भाषा में दिया गया नारा “स्वराज्य हा माझा जन्मसिद्ध हक्क आहे आणि तो मी मिळवणारच” (स्वराज यह मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर ही रहूँगा) बहुत प्रसिद्ध हुआ। Bal Gangadhar Tilak Quotes In Hindi
Bal Gangadhar Tilak Quotes In Hindi लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के अनमोल विचार
भारत की गरीबी पूरी तरह से वर्तमान शासन की कारण से है ।
– बाल गंगाधर तिलक
भूविज्ञानी उस बिंदु पर धरती का इतिहास लेते हैं जहाँ पुरातत्वविद् इसे छोड़ देते हैं, और इसे और भी दूर प्राचीन काल में ले जाते हैं ।
– बाल गंगाधर तिलक
स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है, और मेरे पास ये रहेगा !
– बाल गंगाधर तिलक
धर्म और व्यावहारिक जीवन अलग नहीं हैं । सन्यास लेना जीवन का परित्याग करना नहीं है । वास्तविक भावना सिर्फ अपने लिए काम करने की बजाये देश को अपना परिवार बना कर एक साथ काम करना है । आगे का कदम मानवता की सेवा करना है और अगला कदम भगवान की सेवा करना है ।
– बाल गंगाधर तिलक
स्वतंत्रता में प्रगति निहित है । स्वशासन बिना औद्योगिक प्रगति संभव नहीं है, न ही राष्ट्र के लिए शैक्षिक योजनाओं की कोई उपयोगिता है : देश की आजादी के लिए प्रयास करना सामाजिक सुधारों से अधिक महत्वपूर्ण है ।
– बाल गंगाधर तिलक
हो सकता है ये भगवान की इच्छा हो कि मैं जिस कारण का प्रतिनिधित्व करता हूँ उसे मेरे आजाद रहने की तुलना में ज्यादा मेरे पीड़ा में होने से अधिक लाभ मिले ।
– बाल गंगाधर तिलक
यह सच है कि बारिश की अभाव के कारण अकाल होता है लेकिन ये भी सच है कि भारत के लोगों के पास इस बुराई से लड़ने की शक्ति नहीं है ।
– बाल गंगाधर तिलक
भारत का तब तक खून बहाया जा रहा है जब तक की ये बस कंकाल ना बन जाये ।
– बाल गंगाधर तिलक
अगर हम किसी भी देश के इतिहास को अतीत की ओर देखते हैं, तो हम अंत में मिथकों और परम्पराओं के काल में पहुंच जाते हैं जो आखिरकार अभेद्य अंधेरे में डूब जाता है ।
– बाल गंगाधर तिलक
अगर भगवान छुआछूत को मानता है तो मैं उसे भगवान नहीं कहूँगा ।
– बाल गंगाधर तिलक
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