धनतेरस यह दिपावली का पहला दिन होता है और इस दिन सोना – चाँदी की खरीदी करना बहोत शुभ माना जाता है | धनतेरस को धनत्रयोदशी भी कहा जाता है | भारत सरकार इस दिन को राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस मनाने का निर्णय लिया है | धनतेरस के दिन ही भगवान धन्वंतरी का जन्म हुआ है | Dhanteras importance hindi
धनतेरस का महत्त्व क्या है और इस दिन चाँदी क्यों खरीदते है
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जैन धर्म में धनतेरस को “धन्यतेरस ” या “ध्यानतेरस” कहा जाता है | भगवान महावीर इस दिन तीसरे और चौथे ध्यान में जाने के लिए योग निरोध में चले गए थे | तीन दिन के ध्यान के बाद योग निरोध करते हुए भगवान महावीर को निर्वाण प्राप्त हुआ था | इसलिए तभी से इस दिन को धन्यतेरस भी कहा जाता है |
धनतेरस क्यों मनाया जाता है ?
इस धनतेरस के पीछे एक कहानी है , जिसके कारण दिपावली का पहला दिन धनतेरस के नाम से मनाया जाता है | इस प्रथा के पीछे एक लोक कथा है, कथा के अनुसार किसी समय में एक राजा थे जिनका नाम हेम था | दैव कृपा से उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई | ज्योंतिषियों ने जब बालक की कुण्डली बनाई तो पता चला कि बालक का विवाह जिस दिन होगा उसके ठीक चार दिन के बाद वह मृत्यु को प्राप्त होगा | राजा इस बात को जानकर बहुत दुखी हुआ और राजकुमार को ऐसी जगह पर भेज दिया जहां किसी स्त्री की परछाई भी न पड़े | दैवयोग से एक दिन एक राजकुमारी उधर से गुजरी और दोनों एक दूसरे को देखकर मोहित हो गये और उन्होंने गन्धर्व विवाह कर लिया |
विवाह के पश्चात विधि का विधान सामने आया और विवाह के चार दिन बाद यमदूत उस राजकुमार के प्राण लेने आ पहुंचे | जब यमदूत राजकुमार प्राण ले जा रहे थे उस वक्त नवविवाहिता उसकी पत्नी का विलाप सुनकर उनका हृदय भी द्रवित हो उठा परंतु विधि के अनुसार उन्हें अपना कार्य करना पड़ा | यमराज को जब यमदूत यह कह रहे थे उसी वक्त उनमें से एक ने यमदेवता से विनती की हे यमराज क्या कोई ऐसा उपाय नहीं है जिससे मनुष्य अकाल मृत्यु से मुक्त हो जाए | दूत के इस प्रकार अनुरोध करने से यमदेवता बोले हे दूत अकाल मृत्यु तो कर्म की गति है इससे मुक्ति का एक आसान तरीका मैं तुम्हें बताता हूं सो सुनो | कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी रात जो प्राणी मेरे नाम से पूजन करके दीप माला दक्षिण दिशा की ओर भेट करता है उसे अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता है | यही कारण है कि लोग इस दिन घर से बाहर दक्षिण दिशा की ओर दीप जलाकर रखते हैं |
धनतेरस कैसे मनाया जाता है ?
धन्वन्तरि जब प्रकट हुए थे तो उनके हाथो में अमृत से भरा कलश था | भगवान धन्वन्तरि कलश लेकर प्रकट हुए थे इसलिए ही इस अवसर पर बर्तन खरीदने की परम्परा है | कहीं कहीं लोकमान्यता के अनुसार यह भी कहा जाता है कि इस दिन धन (वस्तु) खरीदने से उसमें तेरह गुणा वृद्धि होती है | इस अवसर पर लोग धनिया के बीज खरीद कर भी घर में रखते हैं | दीपावली के बाद इन बीजों को लोग अपने बाग-बगीचों में या खेतों में बोते हैं।
धनतेरस के दिन चांदी खरीदने की भी प्रथा है; जिसके सम्भव न हो पाने पर लोग चांदी के बने बर्तन खरीदते हैं | इसके पीछे यह कारण माना जाता है कि यह चन्द्रमा का प्रतीक है जो शीतलता प्रदान करता है और मन में संतोष रूपी धन का वास होता है | संतोष को सबसे बड़ा धन कहा गया है | जिसके पास संतोष है वह स्वस्थ है सुखी है और वही सबसे धनवान है | भगवान धन्वन्तरि जो चिकित्सा के देवता भी हैं उनसे स्वास्थ्य और सेहत की कामना के लिए संतोष रूपी धन से बड़ा कोई धन नहीं है | लोग इस दिन ही दीपावली की रात लक्ष्मी गणेश की पूजा हेतु मूर्ति भी खरीदते हैं |
पूजा एवं विधि :
धनतेरस के दिन दीप जलाककर भगवान धन्वन्तरि की पूजा करें। भगवान धन्वन्तरी से स्वास्थ और सेहतमंद बनाये रखने हेतु प्रार्थना करें। चांदी का कोई बर्तन या लक्ष्मी गणेश अंकित चांदी का सिक्का खरीदें। नया बर्तन खरीदे जिसमें दीपावली की रात भगवान श्री गणेश व देवी लक्ष्मी के लिए भोग चढ़ाएं।
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