हरिवंशराय बच्चन का जन्म उत्तर प्रदेश के ज़िला प्रताप गढ़ के गाँव बाबूपट्टी (राणीगंज) में एक श्रीवास्तव कायस्थ परिवार में हुआ । उनको बचपन में बच्चन कहा जाता था जो कि उन्होंने अपने नाम के साथ जोड़ लिया । वह हिंदी साहित्य के छायावाद युग के जाने माने कवि हैं। उनकी रचनायों में तेरा हार (1932), मधुशाला (1935), मधुबाला (1936), मधुकलश (1937), निशा निमन्त्रण (1938), एकांत-संगीत (1939), आकुल अंतर (1943), सतरंगिनी (1945), हलाहल (1946), बंगाल का काल (1946), खादी के फूल (1948), सूत की माला (1948), मिलन यामिनी (1950), प्रणय पत्रिका (1955), धार के इधर उधर (1957), आरती और अंगारे (1958), बुद्ध और नाचघर (1958), त्रिभंगिमा (1961), चार खेमे चौंसठ खूंटे (1962), १९६२-१९६३ की रचनाएँ, दो चट्टानें (1965), बहुत दिन बीते (1967), कटती प्रतिमाओं की आवाज (1968), उभरते प्रतिमानों के रूप (1969), जाल समेटा (1973), शामिल हैं। Harivansh Rai Bachchan Inspirational Poems
हरिवंशराय बच्चन की प्रेरणादायक कविताएँ Harivansh Rai Bachchan Inspirational Poems
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कोशिश करने वालों की हार नहीं होती
लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती
कोशिश करने वालों की हार नहीं होतीनन्हीं चींटी जब दाना लेकर चलती है
चढ़ती दीवारों पर, सौ बार फिसलती है
मन का विश्वास रगों में साहस भरता है
चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना न अखरता है
आख़िर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती
कोशिश करने वालों की हार नहीं होतीडुबकियां सिंधु में गोताखोर लगाता है
जा जा कर खाली हाथ लौटकर आता है
मिलते नहीं सहज ही मोती गहरे पानी में
बढ़ता दुगना उत्साह इसी हैरानी में
मुट्ठी उसकी खाली हर बार नहीं होती
कोशिश करने वालों की हार नहीं होतीअसफलता एक चुनौती है, स्वीकार करो
क्या कमी रह गई, देखो और सुधार करो
जब तक न सफल हो, नींद चैन को त्यागो तुम
संघर्ष का मैदान छोड़ मत भागो तुम
कुछ किये बिना ही जय जय कार नहीं होती
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती
अग्निपथ
वृक्ष हों भले खड़े,
हों घने हों बड़े,
एक पत्र छाँह भी,
माँग मत, माँग मत, माँग मत,
अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ।तू न थकेगा कभी,
तू न रुकेगा कभी,
तू न मुड़ेगा कभी,
कर शपथ, कर शपथ, कर शपथ,
अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ।यह महान दृश्य है,
चल रहा मनुष्य है,
अश्रु श्वेत रक्त से,
लथपथ लथपथ लथपथ,
अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ।
चल मरदाने
चल मरदाने, सीना ताने,
हाथ हिलाते, पांव बढाते,
मन मुस्काते, गाते गीत ।एक हमारा देश, हमारा
वेश, हमारी कौम, हमारी
मंज़िल, हम किससे भयभीत ।चल मरदाने, सीना ताने,
हाथ हिलाते, पांव बढाते,
मन मुस्काते, गाते गीत ।हम भारत की अमर जवानी,
सागर की लहरें लासानी,
गंग-जमुन के निर्मल पानी,
हिमगिरि की ऊंची पेशानी
सबके प्रेरक, रक्षक, मीत ।चल मरदाने, सीना ताने,
हाथ हिलाते, पांव बढाते,
मन मुस्काते, गाते गीत ।जग के पथ पर जो न रुकेगा,
जो न झुकेगा, जो न मुडेगा,
उसका जीवन, उसकी जीत ।
चल मरदाने, सीना ताने,
हाथ हिलाते, पांव बढाते,
मन मुस्काते, गाते गीत ।
आज फिर से तुम बुझा दीपक जलाओ
आज फिर से तुम बुझा दीपक जलाओ ।
है कहाँ वह आग जो मुझको जलाए,
है कहाँ वह ज्वाल मेरे पास आए,
रागिनी, तुम आज दीपक राग गाओ;
आज फिर से तुम बुझा दीपक जलाओ ।तुम नई आभा नहीं मुझमें भरोगी,
नव विभा में स्नान तुम भी तो करोगी,
आज तुम मुझको जगाकर जगमगाओ;
आज फिर से तुम बुझा दीपक जलाओ ।मैं तपोमय ज्योती की, पर प्यास मुझको,
है प्रणय की शक्ति पर विश्वास मुझको,
स्नेह की दो बूंदे भी तो तुम गिराओ;
आज फिर से तुम बुझा दीपक जलाओ ।कल तिमिर को भेद मैं आगे बढूंगा,
कल प्रलय की आंधियों से मैं लडूंगा,
किन्तु आज मुझको आंचल से बचाओ;
आज फिर से तुम बुझा दीपक जलाओ ।
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