Dr Rajendra Prasad Biography Hindi डॉ. राजेंद्र प्रसाद यह स्वतंत्र भारत के पहले राष्ट्रपती थे | वह भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के प्रमुख नेताओं में से थे जिन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में प्रमुख भूमिका निभाई | उन्होंने भारतीय संविधान के निर्माण में भी अपना योगदान दिया था जिसकी परिणति २६ जनवरी १९५० को भारत के एक गणतंत्र के रूप में हुई थी | राष्ट्रपति होने के अतिरिक्त उन्होंने स्वाधीन भारत में केन्द्रीय मन्त्री के रूप में भी कुछ समय के लिए काम किया था | पूरे देश में अत्यन्त लोकप्रिय होने के कारण उन्हें राजेन्द्र बाबू या देशरत्न कहकर पुकारा जाता था |
डॉ. राजेंद्र प्रसाद का जन्म एवं परिवार :-
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डॉ. राजेंद्र प्रसाद का जन्म 3 दिसंबर 1884 को बिहार के एक छोटे से गाँव जीरादेई में हुआ था | इनके पिता का नाम महादेव सहाय और माता का नाम कमलेश्वरी देवी था | राजेंद्र प्रसाद के पिता संस्कृत और फारसी के विद्वान थे और माता धार्मिक महिला थी | वे परिवार में सबसे छोटे होने के कारण सबके प्यारे थे | उनके चाचा को कोई संतान नहीं थी इसलिए वह चाचा के सबसे प्यारे थे | बचपन में राजेंद्र प्रसाद जल्दी सो जाते थे और सुबह भी जल्दी उठ जाते थे और बाद में सबको जगाते थे |
उनकी माता उन्हें सबेरे रामायण , महाभारत की कहानियाँ और भजन कीर्तन भी सुनाते थे | दादा, पिता और चाचा के लाड़-प्यार में ही राजेन्द्र बाबू का पालन-पोषण हुआ | दादी और माँ का भी उन पर पूर्ण प्रेम बरसता था |
डॉ. राजेंद्र प्रसाद की शिक्षा :-
जब डॉ. राजेंद्र प्रसाद पाँच साल के थे तो उन्हें फारसी और संस्कृत की शिक्षा ग्रहण करने के लिए एक मौलवी साहब के पास भेज दिया था | उसके बाद प्रारंभिक शिक्षा छपरा के जिल्हा स्कूल में की थी | उन्होंने 18 वर्ष की उम्र में कोलकाता विश्वविद्यालय की परीक्षा दि और उसमे उन्होंने प्रथम स्थान प्राप्त किया | सन 1902 में उन्होंने कोलकाता के प्रेसिडेंसी कॉलेज में दाखिला लिया | 1915 में उन्होंने एलएलएम की परीक्षा पास की थी , इसलिए उन्हें सुवर्ण पदक भी मिला था | उसके बाद उन्होंने लॉ में डॉ . की उपाधी भी प्राप्त की थी |
डॉ. राजेंद्र प्रसाद का विवाह :-
डॉ. राजेंद्र प्रसाद का विवाह बचपन में ही हुआ था , जब वे 13 वर्ष के थे तब इनका विवाह राजवंशी देवी के साथ हुआ था | इसके बाद भी उन्होंने पढ़ाई जारी रखी |
डॉ. राजेंद्र प्रसाद का हिंदी भाषा प्रेम :-
राजेन्द्र बाबू की पढ़ाई फारसी और उर्दू से शुरू हुई थी तथापि बी० ए० में उन्होंने हिंदी ही ली | वे अंग्रेजी, हिन्दी, उर्दू, फ़ारसी व बंगाली भाषा और साहित्य से पूरी तरह परिचित थे तथा इन भाषाओं में सरलता से प्रभावकारी व्याख्यान भी दे सकते थे | गुजराती का व्यावहारिक ज्ञान भी उन्हें था | एम० एल० परीक्षा के लिए हिन्दू कानून का उन्होंने संस्कृत ग्रंथों से ही अध्ययन किया था | हिन्दी के प्रति उनका अगाध प्रेम था | हिन्दी पत्र-पत्रिकाओं जैसे भारत मित्र, भारतोदय, कमला आदि में उनके लेख छपते थे | उनके निबन्ध सुरुचिपूर्ण तथा प्रभावकारी होते थे |
स्वतंत्रता आंदोलन में अहम् भूमिका :-
भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में उनका पदार्पण वक़ील के रूप में अपने कैरियर की शुरुआत करते ही हो गया था | चम्पारण में गान्धीजी ने एक तथ्य अन्वेषण समूह भेजे जाते समय उनसे अपने स्वयंसेवकों के साथ आने का अनुरोध किया था | राजेन्द्र बाबू महात्मा गाँधी की निष्ठा, समर्पण एवं साहस से बहुत प्रभावित हुए और 1921 में उन्होंने कोलकाता विश्वविद्यालय के सीनेटर का पदत्याग कर दिया | गाँधीजी ने जब विदेशी संस्थाओं के बहिष्कार की अपील की थी तो उन्होंने अपने पुत्र मृत्युंजय प्रसाद, जो एक अत्यंत मेधावी छात्र थे, उन्हें कोलकाता विश्वविद्यालय से हटाकर बिहार विद्यापीठ में दाखिल करवाया था |
उन्होंने सर्चलाईट और देश जैसी पत्रिकाओं में इस विषय पर बहुत से लेख लिखे थे और इन अखबारों के लिए अक्सर वे धन जुटाने का काम भी करते थे | 1914 में बिहार और बंगाल मे आई बाढ में उन्होंने काफी बढचढ कर सेवा-कार्य किया था | बिहार के 1934 के भूकंप के समय राजेन्द्र बाबू कारावास में थे | जेल से दो वर्ष में छूटने के पश्चात वे भूकम्प पीड़ितों के लिए धन जुटाने में तन-मन से जुट गये और उन्होंने वायसराय के जुटाये धन से कहीं अधिक अपने व्यक्तिगत प्रयासों से जमा किया | सिंध और क्वेटा के भूकम्प के समय भी उन्होंने कई राहत-शिविरों का इंतजाम अपने हाथों मे लिया था |
राष्ट्रपती डॉ. राजेंद्र प्रसाद :-
भारत के स्वतन्त्र होने के बाद संविधान लागू होने पर उन्होंने देश के पहले राष्ट्रपति का पदभार सँभाला | राष्ट्रपति के तौर पर उन्होंने कभी भी अपने संवैधानिक अधिकारों में प्रधानमंत्री या कांग्रेस को दखलअंदाजी का मौका नहीं दिया और हमेशा स्वतन्त्र रूप से कार्य करते रहे | हिन्दू अधिनियम पारित करते समय उन्होंने काफी कड़ा रुख अपनाया था | राष्ट्रपति के रूप में उन्होंने कई ऐसे दृष्टान्त छोड़े जो बाद में उनके परवर्तियों के लिए मिसाल के तौर पर काम करते रहे |
भारतीय संविधान में डॉ. बाबासाहेब आम्बेडकर और डॉ. राजेंद्र प्रसाद की अहम् भूमिका थी | भारतीय संविधान समिति के अध्यक्ष राजेन्द्र प्रसाद ही थे और उन्होंने अपने हस्ताक्षर करके इसे मान्यता दि थी |
डॉ. राजेंद्र प्रसाद के सम्मान एवं अवार्ड्स :-
सन 1962 में उन्हें राजनैतिक और सामाजिक योगदान के लिए सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार “भारतरत्न ” से सम्मानित किया गया था |
डॉ. राजेंद्र प्रसाद की मृत्यु :-
28 फ़रवरी 1963 में उनके जीवन की कहानी समाप्त हुई | यह कहानी थी श्रेष्ठ भारतीय मूल्यों और परम्परा की चट्टान सदृश्य आदर्शों की | हमको इन पर गर्व है और ये सदा राष्ट्र को प्रेरणा देते रहेंगे |
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