आचार्य रामचंद्र शुक्ल यह हिन्दी आलोचक, निबन्धकार, साहित्येतिहासकार, कोशकार, अनुवादक, कथाकार और कवि थे। उनके द्वारा लिखी गई सर्वाधिक महत्वपूर्ण पुस्तक है हिन्दी साहित्य का इतिहास, जिसके द्वारा आज भी काल निर्धारण एवं पाठ्यक्रम निर्माण में सहायता ली जाती है। हिंदी में पाठ आधारित वैज्ञानिक आलोचना का सूत्रपात उन्हीं के द्वारा हुआ। हिन्दी निबन्ध के क्षेत्र में भी शुक्ल जी का महत्वपूर्ण योगदान है। भाव, मनोविकार संबंधित मनोविश्लेषणात्मक निबंध उनके प्रमुख हस्ताक्षर हैं। शुक्ल जी ने इतिहास लेखन में रचनाकार के जीवन और पाठ को समान महत्व दिया। Ramchandra Shukla Biography प्रसिद्ध हिंदी साहित्यकार आचार्य रामचंद्र शुक्ल की जीवनी
Ramchandra Shukla Biography प्रसिद्ध हिंदी साहित्यकार आचार्य रामचंद्र शुक्ल की जीवनी
जन्म :
आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी का जन्म 4अक्टूबर 1884 को अगोना नामक गाँव में हुआ था | उनका जन्म ब्राह्मण समाज में हुआ था | इनके पिताजी एक Revenue Inspector थे | लेकिन उनके पिताजी की ड्यूटी मिर्जापुर में होने के कारण वे सभी यहाँ आकर बस गए | जब आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी 9 साल के थे , तब उनके माताजी का देहांत हो गया | मातृ सुख के ना मिलने से ही बचपन में वह परिपक्व बन गए |
शिक्षा :
आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी की पढ़ाई के प्रति लग्नशीलता बचपन से ही थी , मगर उन्हें पढ़ाई के लिए अनुकूल वातावरण नहीं मिल सका | मिर्ज़ापुर के लंदन मिशन स्कूल से 1901 में फाइनल परीक्षा उत्तीर्ण की | उनके पिताजी की इच्छा थी की , वह दफ्तर का काम सीखे | लेकिन आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी को उच्च शिक्षा प्राप्त करनी थी | पिताजी ने वकालत की पढ़ाई ने के लिए इलाहाबाद भेज दिया लेकिन इनकी रुची वकालत में ना होकर साहित्य में थी इसलिए वे उसमे अनुत्तीर्ण हो गए |
व्यवसाय :
1903 से 1908 तक इन्होंने “आनंद कादम्बिनी ” में सहायक संपादक का काम किया | इसके साथ ही वह लंदन मिशन स्कुल में ड्राइंग के प्राध्यापक रहे | इसी समय इनके लेख पत्रिकाओं में छपने लगे और धीरे -धीरे उनके विद्वत्ता का यश चारो और फैलने लगा |
विभाध्यक्ष्य का पद :
उनकी योग्यता से प्रभावित होकर १९०८ में काशी नागरी प्रचारिणी सभा ने उन्हें हिन्दी शब्दसागर के सहायक संपादक का कार्य-भार सौंपा जिसे उन्होंने सफलतापूर्वक पूरा किया। श्यामसुन्दरदास के शब्दों में ‘शब्दसागर की उपयोगिता और सर्वांगपूर्णता का अधिकांश श्रेय पं. रामचंद्र शुक्ल को प्राप्त है। वे नागरी प्रचारिणी पत्रिका के भी संपादक रहे। १९१९ में काशी हिंदू विश्वविद्यालय में हिंदी के प्राध्यापक नियुक्त हुए जहाँ बाबू श्याम सुंदर दास की मृत्यु के बाद १९३७ से जीवन के अंतिम काल (१९४१) तक विभागाध्यक्ष का पद सुशोभित किया।
निधन :
२ फरवरी, सन् १९४१ को हृदय की गति रुक जाने से शुक्ल जी का देहांत हो गया।
पुरस्कार :
आचार्य शुक्ल बहुमुखी प्रतिभा के साहित्यकार थे। जिस क्षेत्र में भी कार्य किया उसपर उन्होंने अपनी अमिट छाप छोड़ी। आलोचना और निबंध के क्षेत्र में उनकी प्रतिष्ठा युगप्रवर्तक की है। “काव्य में रहस्यवाद” निबंध पर इन्हें हिन्दुस्तानी अकादमी से ५०० रुपये का तथा चिंतामणि पर हिन्दी साहित्य सम्मलेन, प्रयाग द्वारा १२०० रुपये का मंगला प्रसाद पारितोषिक प्राप्त हुआ था।
निबन्ध :
“चिंतामणि” – “विचारवीथी”
सम्पादन :
“जायसी ग्रन्थावली”, “तुलसी ग्रन्थावली”, “भ्रमरगीत सार”, “हिन्दी शब्द-सागर” और “काशी नागरी प्रचारिणी पत्रिका”
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good explanation to the Ramchandra Shukla’s biography thanks for the sharing this post
jitna ki main janta hu shukla gee ke bare me to mam aapki image main ramchandra jee ke dob birth galat likhi hai please correct this dob
ohhh! sorry 1984 ki jagah par 1884 chahiye tha. Thanks batane ke liye
Thanks
u welcome me aapki sabhi bhi post ko bade he dhyan se padta hu or doosri bat mujhe ramchandra gee ki dob yad bhi thi to sayd isliye mene confirm karne ke lye bola aapko
Amanji by mistake se 1984 ho gai thi so maine use change kar liya hai , aur iske lihe mai aapki bahot bahot dhanyawad dena chahti hu